अतित के सुरंग से गुजरते हुये
हमने देखा खुदको हसते हुये
क्या दिन थे वो प्यार के
आज फैले चारो और ये गम के बादल हैं !!
अतित के सुरंग से गुजरते हुये
हमने देखा खुदको गाते हुये
क्या दिन थे वो खुशहाली के
आज फैला चारो और ये सन्नाटा हैं !!
अतित के सुरंग से गुजरते हुये
हमने देखा खुदको लोगो से घिरे हुये
क्या दिन थे वो दोस्ती- यारी के
आज फैला चारो और ये अकेलापन हैं !!
अतित के सुरंग से गुजरते हुये
हमने देखा खुदको बकबक करते हुये
क्या दिन थे वो फुरसत के
आज फैला चारो और ये काम का बोझ हैं !!
अतित के सुरंग से गुजरते हुये
हमने देखा खुदको बिखरते हुये
तब से आ गये दिन व्याकुलता के
आज फैली चारो और बरबादी हैं !!
- खुशाल भोयर
छान कविता आहे
ReplyDeleteThank you so much !!
DeleteVery nice bhai
ReplyDeleteThank you !!
DeleteNice
ReplyDeleteThank you !!
Deleteसुंदर कविता ✍️👌
ReplyDeleteThank you !! 🙂
DeleteNice poietree 👌👌👍
ReplyDeleteThank you !!
Delete