कुछ पाने के लिए....
देने के लिए रौशनी,
सूरज को भी जलना पढ़ता है....
ढलने के लिए साचे में,
सोने को भी पिघलना पढ़ता है....
बनने के लिए रोटी,
गेहूँ को भी खुद पिसना होता है....
पोहचाने के लिए मंजिल तक राही को,
राह को भी जुतो के घाव झेलने होते है....
बनने के लिए मुर्ती,
पत्थर को भी वार सहने पढ़ते है....
खुद को निर्मल बनाने के लिए,
नदी को भी बहाव बढ़ाना पढ़ता है....
ज़िंदगी का तो यही नियम है,
कुछ पाने के लिए, कुछ खोना ही होता है....
अगर दौड़ पुरी करनी हो,
तो दौड़ना हमें ही होता है....
बुलंदियों को छुनें के लिए,
हमें बस थोडी मेहनत करना होता है....
पंख फैलाकर उड़ने के लिए,
आखिर, तितली को भी, कुछ वक्त कैद में रहना पढ़ता है....
-Pranjali Ashtikar

Very inspiring 👌👌
ReplyDeleteNice poem Pranju 🌼🤟
Thank U Khush😃😊😊
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