उडान
खुश थी मै, अपनी हि दुनिया मे
जब मुलाकात हुयी उससे तो जिने का मकसद सिखाया उसकी दुनिया ने !!
सब कुछ होकर भी खाली खाली सा लगता था मुझे
वो सारे शौक पालती थी, जिने का समय तक नही मिला था जिसे !!
शरीर का हर हिस्सा था मेरे पास, फिर भी खामिया ढुंढती थी यहा
उसका सब धिरे धिरे मिट राहा था, फिर भी हर नजर से खुबसुरत थी वहा !!
सब थे, फिर भी अकेली थी मै, ढुंढती थी कही साथ
उसका कोई नही था, पर प्यार से थाम लेती थी हर हाथ !!
मेरे सपने थे , उडना था, पर रुक ज्याती कहकर मुश्किल है यार
देख कर उसे लगा, मुश्किले छोटी थी उसकी जंग के सामने , फिर भी उंचा उड कर जीत ज्याती थी वो हर बार !!
आज उसने जीने और हसने का गहरा रास्ता मुझे बता दिया
और जहां छोडकर भी सबको अपना बना लिया!!
-Vaishnavi
Nice poem 🤘👌👌
ReplyDeleteKeep it up 🌼🕺