चाय की चुस्कियो के साथ...
चाय की चुस्कियो के साथ,
उसे ताड़ने की आदत लग गई है...
मेरे ख्यालों में भी उसने,
अपनी जगह बना ली है...
उसकी आदतों की अब,
मुझे भी आदत हो गई है...
अच्छी-बुरी सारी आदतें,
अब हमने अपना ली है...
लब्ज़ो की जगह,
अब खामोशियों ने ले ली है...
बिन कहें दिल की बात,
अब आँखें समझने लगी है...
दिल की ख्वाहिशे,
अब बढ़ने लगी है...
या कहो, अरमानों की चिड़ियाँ,
उड़ान भर रही है...
ख्वाबों में अब,
उसकी दखल-अंदाज़ी बढ़ गई है,
या कहिए की अब,
ज़िंदगी और खुबसूरत हो गई है...
खर्राटो की जगह,
अब किसी और ने ले ली है...
हाँ, मेरी निंदे भी,
अब चोरी हो गई है...
-Pranjali Ashtikar
Nice poem 👌 ...keep it up 👍🎉
ReplyDeleteThank U Khush😃
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