क्या पाया और क्या खोया है...
ऊचाई,
अजीब है...
यहाँ पहोचने की, तमन्ना थी...
बस यही, मेरी मंजिल थी...
अब यहाँ, माहोल अलग है...
हर जगह बस, मेरा ही फितूर है...
थोड़ी मन में, घबराहट है...
थोड़ी बेचैनी, अब भी है...
मन में उलझन हो रही है...
मुझे उलझाए जा रही है...
ना कोई साथी, ना कोई अपना है...
उनके लिए, ये दिल अब तड़पता है...
अपनो की याद से, दिल भर आता है...
अपनो का साथ तो अब बस लगता एक सपना है...
यहाँ, मेरे उपर, कोई और नहीं...
हा मगर, कोई साथ भी नहीं...
मेरी कामयाबी का जश्न तो सारी दुनिया ने बनाया है...
मगर, सिर्फ मेरा रब जानता है,
मैंने क्या पाया और क्या खोया है....
-Pranjali Ashtikar
Proud of u siso......
ReplyDeleteI'm with u but.. 😁
Yes Dear😘😘
DeleteVery nice Poem ...👌👌👌
ReplyDeleteThanks Khush😊😊
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