Skip to main content

DEAR POETRY

 

DEAR POETRY



What can I write on you dear poetry 

As innovative you seem to me with full of mystery

words are short for your warmth in my trunk 

And this feeling itself make me feel shrunk 



Below the tree when I was sitting last year 

When nobody was with me to say, oh dear

Tired of every happenings, I was gloomy and lonely

Except that I had read some beautiful poetry



Like a failure I had lived in the darkness 

As big shadow was upon me of cloud's Highness

My freedom was waving behind those black clouds

Where cheering sun was waiting to feel proud



There I recalled from Robert Frost's hoods

The two roads diverged into the yellow woods 

And Agneepath's  words rocked through my cortex

Not to stop, not to hault, not to turn back



Following this itself brought me out of dark shadow 

Into the Sunshine away from pitfall meadows

Dear poetry, You are grief reliever, you are success motivator

Being Processor of brain, you are strong thought cultivator



You are the words of inspiration to all 

From fierce war at border to peaceful exam hall 

How passionately you make beautiful things italic bold 

And to the vulnerable you protect from freezing cold

How beautifully one expresses love through you, oh poetry 

Gambling of words make those two crazy



Behalf of this world you are a lyrical song 

Full of music and pour out of heart 

Impossible as always it will for us 

To contains your existence in any wording cups

Our wraths will perish one day in this life game

But you will keep flaming our lamp of name

What can I write on you dear poetry 

As innovative you seem to me with full of mystery 



- Khushal Bhoyar 

Comments

  1. What a lovely creation Khushal..!!!👏👏👏👏
    Loved it...

    ReplyDelete

Post a Comment

Popular posts from this blog

WAKT KI BAAT...WAKT KE HAAT...

वक्त की बात ...वक्त के हात ..

DIL KI BAT..

दिल की बात

SWABHIMAN...

स्वाभिमान मशख्खत तेरी गुमनाम है, मालूमात बकवास हुई, तेरा कोई वजूद नहीं तो तुज़ में वो बात नहीं। किस्से हज़ार है बारिश बेमिसाल हुई। पर तुझे मनाए कोई इतनी किसी को तेरी परवाह नहीं। कुछ हासिल हो तो ही तू है वरना तेरा होना किसी के लिए खास नहीं।  कुछ पा ले फिर बात कर नामुराद, अब तू किसी के लिए सौगात सही। जो हक है तेरा वो है तुझे पाना, खुदाई तेरी किसी खैरात की मोहताज नहीं।  ना समझ तू घमंड इसे, है तेरा स्वाभिमान यही। जब तक न कर ले कुछ हासिल तू, ना भूल की तेरा कोई वजूद नहीं, तुझ में वो बात नहीं। - Yogeshwari Bhoyar कलम वहीं, बाते भी वही, बस पहचान कुछ नहीं....

BHEDIYA ..

भेडिया

DARK NIGHT ..

DARK NIGHT

जीवन का एक अंग.......

तू जिंदगी का हिस्सा,  कोई माने  या  ना माने, तू हर कहानी का किस्सा..... कही डर तो कभी आपदा के नाम से तेरी पहचान, अल्फाज बदलते, भाव मात्र एक समान..... रहे तकरार, की तू कमजोरी की निशानी, ऐसी भूल ना करे कोई बुद्धि सयानी..... इस एक मात्र भय ने क्या खूब रंग दिखाए सच्चे-झूठे काम, समय समय करवाए... फिर पश्चाताप की कसोटी में तू खुद को आजमाएं बेलगाम दिमाग यादों के प्रभाव से उभर न पाए..... समय फिर नई घटनाएं नव अनुभव साथ लाये बीती बातों की परछाई पीछे छोड़ जाये.... वो साया भय का, सबब याद दिलाये सही गलत का सबक बेहतरी की ओर ले जाये.... तेरे हिम्मत की पहचान तुझे भय ने करवाई धैर्य की शीतलता पल पल सिखाई..... अंतता, मौजूदगी भयकी अनुशासन बढ़ाए, नैतिकता और मानवता से जीवन सजाए..... तू अस्तित्व भय का स्वीकार कर उठ, आगे बढ़ और हर चुनौती पार कर.... -Yogeshwari K Bhoyar

TARIF..

तारीफ

CHANGE IS LIFE...

CHANGE IS LIFE

ती

ती .. कोणाला नाही आवडत आपल बालपण.???  प्रत्येकजण बोलतेय,   लहानपण देगा देवा,  मुंगी साखरेचा रवा' पण, कुणी ते  बालपणच हिरावून घेतल तर.???  होय,  माझ बालपण हिरावलय...  बालपणात हरवलेली मी, किती सुंदर जग होते,  माझ्या स्वप्नाच्या दुनियेत आनंदाचे क्षण होते... ना कुठली चिंता,  ना कसली काळजी,  मनसोक्त खेळणे आणि स्वछंद भरारी... मी  बाबांची परी आणि आईची लाडली,  दादासोबत भांडत - खेळत प्रेमाने फुलली...  मित्र - मैत्रिणींसोबत जमलेली माझी गट्टी,  जणू हेच सर्व माझी विश्वनगरी...  परंतु,  एके दिवशी झाले असे,  मी चुकली वाट की नशिबच थोडे होते.???  जीवनातला तो शेवटचा काळा दिवस होता,  माझ्या मनाविरुद्ध सोबत घेऊन जात होता...  मी  शाळेच्या वाटेला निघाली,  मध्येच काका मला अडवी,  मला सोबत चालायला लावी...  मी नाही म्हटल्यावर मला उचलून घेई,  काय चुकी माझी,  सांगा ना कुणीतरी.???   आई ग,  ऐक ना,  तू रडू नकोस खुप घाबरली होती मी,  ओरडायला पण जागा उरली नव्हती,  माझ्या तोंडामध्ये काहीतरी कोंबून का ते काका मला घेऊन जाई.???  काय चुकी माझी,  सांग ना ग आई.???   आई,  अंधाराची वाट होती माझ्या डोळ्यांना पट्टी होती,  श्व

लोक-मत

'लोक-मत' " बोलावे मनमोकळे तर  किती तो बालिशपणा, आणि शांत राहण्याची करावी हुशारी तर  किती तो शिष्टपणा! नकारात्मकता डोक्यामधे  यांनीच नाही का भरावी, हे नसतील तर आयुष्याची गाडी  यशस्वी कशीच व्हावी! वागावे कसे यांच्याशी  हेच मला न कळे, परी ही दांभिक विचारसरणी काहीच लोक आचरे! 'लोकांच्या मताची' तर्हाच न्यारी चित भी मेरी और पट भी मेरी! "                                         ---मृणाली सोसे .