माँ
डर से काप जाता हुँ
हडबडाकर रुक जाता हुँ
जब डरावने सपनो को रोकने की कोशिश मे डटा रहता हुँ
रोकर माँ मै अपना डर आँखिर दुर करता हुँ
वहा तुमसे बिछड़कर सहम जाता हुँ
तुमसे मिलने के लिए भटकता रहता हुँ मैं माँ
तुम नही दिखती तो ये दिल जोरो से रो देता हैं
तुम बिन क्या हुँ ये एहसास रुलाता हैं
बिन पानी के समुन्दर को कौन पुछता हैं
तुम बिन जैसे पृथ्वी के हरी चादर का मोल नही मुझे
तुम बिन मेरा कोई वजूद नही हैं
तुमसे मैं और तुम ही मेरे सबकुछ हो
अक्सर नही रख पाता हुँ मैं तुम्हारा खयाल
पर तु नही भुलती मुझे पलको पर बिठाना
माँ, तुम बिन ये संसार अधुरासा लगता हैं
तु पास ना रही तो जी कही भी नही लगता हैं
तुम्हारी गोद में दुनिया का सारा सुखुन मिलता हैं
तुम पास हो तो डर छुमंतर हो जाता हैं
तुम्हारे पास रहने के लिए ये दिल रोता हैं
पर मजबूरी ऐसी की भगवानने मुझे थोडे दुर भेजा हैं
वापस ज़ल्दी आउँगा ये वादा हैं
बस तुमसे प्यार ढेर सारा हैं ये तुम्हें बताना हैं
Love u lots mamma ...
- Khushal Bhoyar
🥺🥺 Yr, Rula diya...
ReplyDeleteBahot acchi poem likha h... 👌👌
Thank you 😊
DeleteBahot accha bhai dil ko laga😇
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