शुक्रिया हज़ार बार
यु तुम्हारा,
मेरी जिंदगी में आना...
धीरे-धीरे करके,
बहोत कुछ बन जाना...
मेरा तुमपे,
एतबार करना...
सारी दुनियाँ की नसिहते,
नज़रअंदाज़ करना...
जो बात होनी थी,
हो ही गई...
तुमने औकात अपनी,
दिखा ही दी...
तुमने चाहा,
मैं रोऊँ...
जो कभी ना की,
उस गलती पे पछताऊँ...
नाक रगड़ के,
माफी मैं माँगू...
तुम्हारी सेवा में,
हर दफा लगी रहूँ...
तुम हो इंसान,
भगवान नहीं...
जो चाहो तुम,
हर बार वो होगा नहीं...
टूटे तुमसे रिश्ते,
जब सारे के सारे...
चली गई तकलीफें भी,
जो बैठी थी तुम्हारे सहारे...
तुम गई तो,
बहोत अच्छा हुआ...
मेरा अगला पड़ाव,
अब शुरू हुआ...
खुद पे थोड़ा,
हमने रहम किया...
फिर एक बार,
खुद से प्यार किया...
दुआएं हमारी,
कुबूल हुई...
दोस्तों (सच्चे) के शकल में,
जन्नत नसीब हुई...
खिलखिलाने लगी है,
जिंदगी मेरी...
अब बेहतर लग रही है,
बंदगी मेरी...
आइ है मानो,
बसंत की बहार...
हर तरफ है खुशी,
हर वक्त है प्यार...
अब मुझे तुमसे,
कोई नाराज़गी नहीं है यार...
मुझे बक्शने के लिए,
शुक्रिया हज़ार बार...
शुक्रिया हज़ार बार...
-Pranjali Ashtikar
Looks like well penned experience 👏👌👌
ReplyDeleteExactly 😃😅
DeleteKhup Mast
ReplyDeleteThank U Nik😃😊
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