उदासी की दवा
उदास सा लग रहा था,
मन कही भी ठहेर नहीं रहा था...
बिना वजह ये बेचैनी क्यूँ है,
पता नहीं चल-पा रहा था...
कई तरह से मन को,
उलझाना चाहा हमने...
पर ये तो था आज,
एक अलग ही गम में...
उपाय मुझे मिला नहीं,
सोचा, तुमसे राय ले-लू...
अगर कोई हो दवा इस मर्ज की,
वो मैं झट से खा-पी लू...
बात करते-करते मुझे,
एहसास यू हुआ...
बेचैन ये मन,
आखिर था किसके लिए हुआ...
पता मुझे चला,
तुम ही हो मेरी दवा...
तुम ही हो जिसके लिए,
दिल उदास था हुआ...
-Pranjali Ashtikar
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