मुझे समझ आ रहा है...
जिसे बोलती थी, हक से अपना...
आज वो अपनी, जान छुड़ा रहा है...
जो मेरे लिए, सब छोड़ आता था...
किसी और के लिए, अब मुझे छोड़ रहा है...
सबसे पक्की है अपनी यारी, ये समझती थी मैं...
तुझे अपना हमेशा, मानती थी मैं...
आज भी मुझे, यकीन नहीं हो रहा है...
कभी मेरा भी दिल तोड़ सकता है तू, ये सोच, दिल सहम रहा है...
तुझसे बहस करू, या मार ही डालु...
हक से याद दिलाऊँ, या हक छोड़ जाऊँ...
आज पहली बार, मन में सवाल रहा है...
आखिर क्युँ मुझसे तू, मुँह मोड़ रहा है...
धीरे-धीरे, मुझसे तू, दूर जा रहा है...
अंजान नहीं हूँ मैं, मुझे समझ रहा है...
किस गलती की मुझे, तू सज़ा दे रहा है...
मेरी गलती क्या है ये छोड़कर, मुझे सब समझ आ रहा है...
-Pranjali Ashtikar
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ReplyDelete😃😊🙏🙏
DeleteNyc work gal... 🤟🤟
ReplyDeleteThank U 😃😊😊
DeleteVery nice 👏👏👏
ReplyDeleteThank U 😊😊😊
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